बगुला भगत - Hindi Kids Best Kahani - Hindi Kahaniya

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Monday, October 18, 2021

बगुला भगत - Hindi Kids Best Kahani

 बगुला भगत - Hindi Kids Best Kahani , Moral Kids Hindi Stories , Baccho Ke Liye Hindi Kahaniya

 

बगुला भगत - Hindi Kids Best Kahani , Moral Kids Hindi Stories , Baccho Ke Liye Hindi Kahaniya



एक वन प्रदेश में बहुत बड़ा तालाब था. वहां हर प्रकार के जीवों के लिए भोजन सामग्री उपलब्ध थी. इसलिए वहां कई प्रकार के जीव, पक्षी, मछलियां, कछुए और केकड़े आदि रहते थें. पास में ही बगुला रहता था, जिसे मेहनत करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था. उसकी आंखें भी कुछ कमज़ोर थीं. मछलियां पकड़ने के लिए तो मेहनत करनी पड़ती हैं, जो उसे खलती थी. इसलिए आलस के मारे वह अक्सर भूखा ही रहता था. एक टांग पर खड़ा यही सोचता रहता कि क्या उपाय किया जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाए रो़ज खाना मिल जाए. एक दिन उसे एक उपाय सूझा तो वह उसे आज़माने बैठ गया.

बगुला तालाब के किनारे खडा हो गया और आंसू बहाने लगा. एक केकडे ने उसे आंसू बहाते देखा तो वह उसके निकट आया और पूछने लगा “मामा, क्या बात है भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने की बजाय खड़े होकर आंसू क्यों बहा रहे हो?”

बगुले ने ज़ोर की हिचकी ली और भर्राए गले से बोला “बेटे, बहुत कर लिया मछलियों का शिकार अब मैं यह पाप और नहीं करुंगा. मेरी आत्मा जाग उठी है, इसलिए मैं निकट आई मछलियों को भी नहीं पकड़ रहा हूं. तुम तो देख ही रहे हो.”

केकड़ा बोला “मामा, शिकार नहीं करोगे, कुछ खाओगे नहीं तो मर नहीं जाओगे?”

बगुले ने एक और हिचकी ली “ऐसे जीवन का नष्ट होना ही अच्छा है बेटे, वैसे भी हम सबको जल्दी मरना ही है. मुझे ज्ञात हुआ है कि शीघ्र ही यहां बारह वर्ष लंबा सूखा पड़ेगा.”

बगुले ने केकड़े को बताया कि यह बात उसे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई है, जिसकी भविष्यवाणी कभी ग़लत नहीं होती. केकड़े ने जाकर सबको बताया कि कैसे बगुले ने बलिदान व भक्ति का मार्ग अपना लिया हैं और सूखा पड़ने वाला है. उस तालाब के सारे जीव मछलियां, कछुए, केकड़े, बत्तख व सारस आदि दौड़े-दौड़े बगुले के पास आए और बोले “भगत मामा, अब तुम ही हमें कोई बचाव का रास्ता बताओ. अपनी अक्ल लड़ाओ तुम तो महाज्ञानी बन ही गए हो.”

बगुले ने कुछ सोचकर बताया कि यहां से कुछ दूरी पर एक जलाशय हैं जिसमें पहाड़ी झरना बहकर गिरता है. वह कभी नहीं सूखता. यदि जलाशय के सब जीव वहां चले जाएं तो बचाव हो सकता है. अब समस्या यह थी कि वहां तक जाया कैसे जाएं? बगुले भगत ने यह समस्या भी सुलझा दी “मैं तुम्हें एक-एक करके अपनी पीठ पर बिठाकर वहां तक पहुंचाऊंगा, क्योंकि अब मेरा सारा शेष जीवन दूसरों की सेवा करने में गुजरेगा.”

सभी जीवों ने गद्-गद् होकर ‘बगुला भगतजी की जय’ के नारे लगाए.

अब बगुला भगत के पौ-बारह हो गई. वह रोज़ एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता और कुछ दूर ले जाकर एक चट्टान के पास जाकर उसे उस पर पटककर मार डालता और खा जाता. कभी मूड हुआ तो भगतजी दो फेरे भी लगाते और दो जीवों को चट कर जाते तालाब में जानवरों की संख्या घटने लगी. चट्टान के पास मरे जीवों की हड्डियों का ढेर बढ़ने लगा और भगतजी की सेहत बनने लगी. खा-खाकर वह खूब मोटे हो गए. मुख पर लाली आ गई और पंख चर्बी के तेज़ से चमकने लगे. उन्हें देखकर दूसरे जीव कहते “देखो, दूसरों की सेवा का फल और पुण्य भगतजी के शरीर को लग रहा है.”

बगुला भगत मन ही मन खूब हंसता. वह सोचता कि देखो दुनिया में कैसे-कैसे मूर्ख जीव भरे पडे हैं, जो सबका विश्वास कर लेते हैैं. ऐसे मूर्खों की दुनिया में थोड़ी चालाकी से काम लिया जाए तो मज़े ही मज़े है. बिना हाथ-पैर हिलाए खूब दावत उड़ाई जा सकती है. संसार से मूर्ख प्राणी कम करने का मौक़ा मिलता है बैठे-बिठाए पेट भरने का जुगाड हो जाए तो सोचने का बहुत समय मिल जाता है.

बहुत दिन यही क्रम चला. एक दिन केकड़े ने बगुले से कहा “मामा, तुमने इतने सारे जानवर यहां से वहां पहुंचा दिए, लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आई.”

भगतजी बोले “बेटा, आज तेरा ही नंबर लगाते हैं, आजा मेरी पीठ पर बैठ जा.”

केकड़ा खुश होकर बगुले की पीठ पर बैठ गया. जब वह चट्टान के निकट पहुंचा तो वहां हड्डियों का पहाड़ देखकर केकड़े का माथा ठनका. वह हकलाया “यह हड्डियों का ढेर कैसा है? वह जलाशय कितनी दूर है, मामा?”

बगुला भगत ठां-ठां करके खूब हंसा और बोला “मूर्ख, वहां कोई जलाशय नहीं है. मैं एक-एक को पीठ पर बिठाकर यहां लाकर खाता रहता हूं. आज तू मरेगा.”

केकड़ा सारी बात समझ गया. वह सिहर उठा परंतु उसने हिम्मत नहीं हारी और तुरंत अपने पंजों को आगे बढ़ाकर दुष्ट बगुले की गर्दन दबा दी और तब तक दबाए रखी, जब तक उसके प्राण पखेरु उड़ नहीं गए.

फिर केकडा बगुले भगत का कटा सिर लेकर तालाब पर लौटा और सारे जीवों को सच्चाई बता दी कि कैसे दुष्ट बगुला भगत उन्हें धोखा देता रहा.

सीख- दूसरों की बातों पर आंखें मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए और मुसीबत में धीरज व बुद्धिमानी से कार्य करना चाहिए.
   


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