झूठी शान - Zoothi Shan Hindi Story For Kids - Hindi Kahaniya

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Wednesday, September 15, 2021

झूठी शान - Zoothi Shan Hindi Story For Kids

 झूठी शान - Zoothi Shan Hindi Story For Kids

 

झूठी शान - Zoothi Shan Hindi Story For Kids




एक जंगल में पहाड़ की चोटी पर एक किला बना था. किले के एक कोने के साथ बाहर की ओर एक बड़ा देवदार का पेड़ था. किले में उस राज्य की सेना की एक टुकड़ी तैनात थी. देवदार के पेड़ पर एक उल्लू रहता था. वह खाने की तलाश में नीचे घाटी में फैले चरागाहों में आता था. चरागाहों की लंबी घास और झाड़ियों में कई छोटे-छोटे कीट-पतंग मिलते थे, जिन्हें उल्लू अपना भोजन बनाता था. पास ही एक बड़ी झील थी, जिसमें हंस रहते थे. उल्लू पेड़ पर बैठा झील को निहारता रहता. उसे हंसों का तैरना और उड़ना देखकर बहुत आनंद आता था. वह सोचता कि हंस कितना शानदार पक्षी है. एकदम दूध-सा स़फेद, गुलगुला शरीर, सुराहीदार गर्दन, सुंदर मुख और तेजस्वी आंखें. उसकी बड़ी इच्छा थी कि कोई हंस उसे अपना दोस्त बना ले.

एक दिन उल्लू पानी पीने के बहाने झील के किनारे एक झाड़ी पर उतरा. पास ही एक बहुत शालीन व सौम्य हंस पानी में तैर रहा था. हंस तैरता हुआ झाडी के पास आया.

उल्लू ने बात करने का बहाना ढूंढ़ा, “हंस जी, आपकी आज्ञा हो तो पानी पी लूं. बहुत प्यास लगी है.” हंस ने चौंककर उसे देखा और बोला, “मित्र! पानी प्रकृति का दिया वरदान है. इस पर किसी एक का अधिकार नहीं, बल्कि सबका हक़ है.” उल्लू ने पानी पीकर सिर हिलाया जैसे उसे निराशा हुई हो. हंस ने पूछा, “मित्र! असंतुष्ट दिख रहे हो. क्या प्यास नहीं बुझी?” उल्लू ने कहा, “हे हंस! पानी की प्यास तो बुझ गई पर आपकी बातों से मुझे ऐसा लगा कि आप नीति व ज्ञान के सागर हैं. मुझमें उसकी प्यास जग गई है. वह कैसे बुझेगी?”

हंस मुस्कुराया, “मित्र, आप कभी भी यहां आ सकते हैं और मुझसे बात कर सकते हैं. मैं जो जानता हूं आपको बताउंगा और मैं भी आपसे कुछ सीखूंगा.”

इसके बाद हंस व उल्लू रोज़ मिलने लगे. एक दिन हंस ने उल्लू को बता दिया कि वह वास्तव में हंसों का राजा हंसराज है. अपना असली परिचय देने के बाद हंस अपने मित्र को निमंत्रण देकर अपने घर ले गया. उसके यहां शाही ठाठ थी. खाने के लिए कमल व नरगिस के फूलों के व्यंजन परोसे गए. इसके अलावा भी बहुत कुछ था. बाद में सौंफ-इलाइची की जगह मोती पेश किए गए. ये देखकर उल्लू हैरान रह गया.

अब हंसराज रोज़ाना ही उल्लू को महल में ले जाकर खिलाने-पिलाने लगा. इससे उल्लू को डर लगने लगा कि किसी दिन उसे साधारण समझकर हंसराज उससे दोस्ती न तोड़ लें. इसलिए हंसराज की बराबरी करने के लिए उसने झूठमूठ कह दिया कि वह भी उल्लुओं का राजा उल्लूकराज है. झूठ कहने के बाद उल्लू को लगा कि उसका भी फर्ज़ बनता हैं कि हंसराज को अपने घर बुलाए.

एक दिन उल्लू ने दुर्ग के भीतर होनेवाली गतिविधियों को गौर से देखा और उसके दिमाग़ में एक योजना आई. उसने दुर्ग की बातों को बहुत ध्यान से समझा. सैनिकों के कार्यक्रम नोट किए. फिर वह हंसराज के पास चला गया. जब वह झील पर पहुंचा, तब हंसराज कुछ हंसनियों के साथ जल में तैर रहा थे. उल्लू को देखते ही हंस बोला, “मित्र, आप इस समय?”

उल्लू ने उत्तर दिया, “हां मित्र! मैं आपको आज अपना घर दिखाने व अपना मेहमान बनाने के लिए ले जाने आया हूं. मैं कई बार आपका मेहमान बना हूं. मुझे भी सेवा का मौक़ा दें.”

हंस ने टालना चाहा, “मित्र, इतनी जल्दी क्या हैं? फिर कभी चलेंगे.”

उल्लू ने कहा आज तो आपको लिए बिना नहीं जाऊंगा. हंसराज को उल्लू के साथ जाना ही पड़ा.

पहाड़ की चोटी पर बने किले की ओर इशारा कर उल्लू उड़ते-उड़ते बोला वह मेरा किला है. हंस बहुत प्रभावित हुआ.वो दोनों जब उल्लू के घर वाले पेड़ पर उतरे तो किले के सैनिकों की परेड शुरू होने वाली थी. दो सैनिक बुर्ज पर बिगुल बजाने लगे. उल्लू दुर्ग के सैनिकों के रोज के कार्यक्रम को याद कर चुका था, इसलिए ठीक समय पर हंसराज को ले आया था. उल्लू बोला, “देखो मित्र, आपके स्वागत में मेरे सैनिक बिगुल बजा रहे हैं. उसके बाद मेरी सेना परेड और सलामी देकर आपको सम्मानित करेगी.”

रोज़ की तरह परेड हुई और झंडे को सलामी दी गयी. हंस समझा सचमुच उसी के लिए यह सब हो रहा है. उल्लू के इस सम्मान से गदगद होकर हंस बोला, “आप तो एक शूरवीर राजा की भांति ही राज कर रहे हो.”

उल्लू ने हंसराज पर रौब डाला, “मैंने अपने सैनिकों को आदेश दिया है कि जब तक मेरे परम मित्र राजा हंसराज मेरे अतिथि हैं, तब तक इसी प्रकार रोज बिगुल बजे व सैनिकों की परेड निकले.”

उल्लू को पता था कि सैनिकों का यह रोज़ का काम है. हंस को उल्लू ने फल, अखरोट व बनफशा के फूल खिलाए. उनको वह पहले ही जमा कर चुका था. भोजन का महत्व नहीं रह गया. सैनिकों की परेड का जादू अपना काम कर चुका था. हंसराज के दिल में उल्लू मित्र के लिए बहुत सम्मान पैदा हो चुका था. उधर सैनिक टुकड़ी को वहां से कूच करने के आदेश मिल चुका था. दूसरे दिन सैनिक अपना सामान समेटकर जाने लगे तो हंस ने कहा, “मित्र, देखो आपके सैनिक आपकी आज्ञा लिए बिना कहीं जा रहे हैं.”

उल्लू हड़बड़ाकर बोला, “किसी ने उन्हें ग़लत आदेश दिया होगा. मैं अभी रोकता हूं उन्हें.” ऐसा कह वह ‘हूं हूं’ करने लगा.

सैनिकों ने उल्लू की आवाज़ सुनी और इसे अपशकुन समझकर जाना स्थगित कर दिया. दूसरे दिन फिर वही हुआ. सैनिक जाने लगे तो उल्लू ने फिर आवाज़ निकाली. सैनिकों के नायक ने क्रोधित होकर सैनिकों को मनहूस उल्लू को तीर मारने का आदेश दिया. एक सैनिक ने तीर छोड़ा. तीर उल्लू की बगल में बैठे हंस को लगा. तीर लगने पर हंस नीचे गिरा और फड़फड़ाकर मर गया. उल्लू उसकी लाश के पास शोकाकुल हो विलाप करने लगा, “हाय, मैंने अपनी झूठी शान के चक्कर में अपना परम मित्र खो दिया. धिक्कार है मुझ पर.”

उल्लू को आसपास की ख़बर से बेसुध होकर रोते देखकर एक सियार उस पर झपटा और उसका काम तमाम कर दिया.  

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